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Tuesday 13 December 2011

मिथिला मंच पर अहाँ सबहक स्वागत अछि,मिथिला मंच अहाँक लेल एहन मंच अछि जतय अहाँ सभ अपन दुःख दर्द के राखी सके अछि, अपन साहित्य से लोक के अवगत करा सकय छि,मिथिला के नबका टटका समाचार पाबि सकय छि,ते देर नै करू आ मन में जे अछि ओकरा लिखी क हमरा njha61@gmail.com पर पठा दीअ, एहिं मेल से अहाँ अपन विचार आs सुझाव स अवगत कराउ आ सम्पर्क म बनल रहू. " जय मैथिल जय मिथिला धाम"

शुक्रवार, ९ दिसम्बर २०११

ग़ज़ल

सजनी की रूप त कमाल भऽ गेलै
गामक सब छौड़ा भेहाल भऽ गेलै

देखलों जे अहाँक मुसकी सजन
अन्हारियो राति मs इजोर भऽ गेलै

छौड़ा त अपने जवानी मs मगन
बुढबो सब अ
नसम्हार भऽ गेलै

चलली जखन ओ ओढ़नी उड़ाए
सबके त जड़िया बोखार
भऽ गेलै

देखलक सुनील जे गामक हाल
पुछू नै हुनकर की हाल
भऽ गेलै




बृहस्पतिवार, ८ दिसम्बर २०११

गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

समय देत अगर साथ त हम जरुर मिलब /
होयत अगर दारू के भोज त हम फेर मिलब //


"मोहन जी"  ईजोरिया के लेल ओध्लो अन्हरिया /
ढैल जायत अनहरिया राईत त हम फेर मिलब // 


हमरा जरुरत नहीं या पुछबाक उत्तर केरी /
पुछल जायत सवाल त हम फेर मिलब // 


जितब अगर आहा त बाजी लगा लिय / 
देब आहा के सज्जा त हम फेर मिलब //            


           

बुधवार, ७ दिसम्बर २०११

 जय माँ वनेश्वरी - अजय ठाकुर (मोहन जी)

 वनेश्वरी (बिना) माता, दरभंगा जिला के भंडारिसम और मकरंदा गाँव केरी बीच मे छथी, ई कहानी बहुत पूरण अछी जखन अग्रेज के शाशन छल !  अग्रेज हिनका स् बियाह करऽ चाहेत छलैनी ताही लकऽ हिंकार बाबूजी(वाने) बहुत दुखी रहेत छलखिन ई बात जखन वनेश्वरी केरी मालूम परिलैन तऽ वनेश्वरी कहलखिन की बाबूजी आहा  चिंता ज़ूनी करू हम ही आहा के चिंता के कारण छी ने हम आहाक चिंता दूर क देब ! 
एक दिन बिना अपन भतीजा के कोरा मे लकऽ बैशल छली तहीने अग्रेज अपन शेना के  लकऽ अबी गेल,  ई देख वनेश्वरी गाँव के बाहर एक टा पोखेर या त्लिखोरी  ओतऽ चलीऽ गेली और ओही पोखेर मे जा कऽ कूद गेली आ अपन प्राण दऽ देलखीन कुछ साल बीतलाक बाद ई  डमरू पाठक नाम केऽरी परीवार मे स्वप्न देलखीन, की हम त्लिखोरी पोखैर मे छी हमरा एते स निकालु !  डमरू पाठक के परिवार अपना गाँव में सब के स्वप्न वला बात कहलखिन, ई बात सुनी क सब हका-बका रही गेलाह और ओही पोखेर में सऽ निकले के विचार में जुईट गेला !
गाँव केरी पांच टा ब्राम्हण गेला और ओही पत्थर रूपी प्रतिमा के बाहर निकालैथ  जे की ओ प्रतिमा ४.५" छल, और ओही वानेश्वरी के प्रतिमा के एक टा पीपर गाछ के निचा राखल गेल बहुत दिन तक ओही गाछ के निचा में पूजा भेल, ग्राम चनोर के रजा लक्ष्मेषवर  के पुत्र नहीं होए छलनी तऽ ओ ओही वानेश्वरी माँ के दरबार में गेला और कोबला केला की हमरा जे पुत्र होयत त हम आहाके मंदिर बनायब !   एक -दु शाल में हुनका ओत् पुत्र जन्म लेलखिन, मगर ताहि के बाद रजा लक्ष्मेषवर बिसैर गेला कोबला वला, फेर हुनका बेटा के तब्यत खराब भेला के बाद याद भेल त ओ मंदिर बनोलैथ ! आब ओत् रामनमी, दुर्गा पूजा सेहो मनायल जायत या ! 
अखन त ओत् बहुत सुंदर मंदिर और धर्मशाला बनी गेल अछी, और मंदिर के चारु तरफ छहरदेवाली भ गेल अछी !  


ओतुका पुजगरी छथि डमरू पाठक, सचिव रुनु झा (नुनु), कार्य कर्ता, कमलेश, नित्यानंद, फुलबाबु, कनक मिश्रा,          



 जय माँ वनेश्वरी.....जय मैथिल............जय मिथिला...........  

मंगलवार, ६ दिसम्बर २०११

गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

जीवन जिबाक अछी बहुत जरुरी
ठण्ड में बियर आधा, रम होय पुरी  
चाहलो जेकरा पेलो नहीं ओकरा
शाधना "मोहन जी" क रहल अधूरी
मोनक बात सच नै भ पैल
किस्मत के छल नहीं मंजूरी  

ह्रदय फटल देखलो हम नोर
कियो देखलैथ नै मज़बूरी        

  

गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

हम त बैन बैशलो शराबी की करू / 
और कनियाँ स जुदा हम कि रहु //

जिन्दगी बाकी या आब त थोरे दिन / 
दुनू तरप जरैत देह अछी की करू //

कनियाँ ल क आबी गेलैथ हन शीशा /
लेकिन हम खुदस हारल छी की करू // 

छल कहाँ नाव दुबाबे के गप्प  / 
हम त अंधी के हवा छी की करू // 

टुकरा में बैट गेल हमर के पहचान / 
हम त टुटल शीशा छी की करू //  

सोमवार, ५ दिसम्बर २०११

फेंकलो गुगली मारलैथ - अजय ठाकुर (मोहन जी)

अक्का बक्का तीन तलक्का,
फेंकलो गुगली मारलैथ छक्का, 
दर्शक भ गेलैथ हक्का-बक्का, 

करता बन्दन हाथ-जोरी आजू, 
नेता हमर देशक लाज, 
भगवान हिनका भेज्लैथ हन, 
कऽरे लेल धरती पर राज, 

आब नहीं कहियोंन चोर-उचक्का, 
अक्का-बक्का तीन तलक्का,

हिनकर छैईन अपन मज़बूरी, 
मुँह में राम बगल में छुरी, 
देश लैद क चल-लैथ पीठ पर,
"मोहन जी" बढबैत हिनका स दुरी,

वोट करु बस हिनकर पक्का, 
अक्का-बक्का तीन तलक्का,  

शुक्रवार, २ दिसम्बर २०११

गुंजल मैथिलि विश्व में - अजय ठाकुर (मोहन जी)

गुंजल मैथिलि विश्व में, 

सपना भेल साकार, 

राष्ट्र संघ के मंच स, 

मिथिलि केऽरी जयकार,

मिथिलि केऽरी जयकार, 

मिथिला-मैथिलि में बाजल,

देखऽक मिथिलाऽक प्रेम, 

विश्व अचरज से डोलल,

मेम के ममता टुटल, 

मिथलांचल माँ भेल धन्य, 

स्नेह की सरिता फुटल

कहलैथ "मोहन जी" कविराज  !

बृहस्पतिवार, १ दिसम्बर २०११

हास्य कथा - अजय ठाकुर (मोहन जी)

 प्रभाकर चौधरी डॉक्दरी के परीक्षा उत्रिन्न भेला के बाद ओ अपन दोस्त सब के खुब  भोजन करोलैथ ! और ओहे संगे एक टा मुर्गा खुब तेल में लाल कैल और एक बोतल देशी दारू सेहो लक भाल्पट्टी गाँव के मुखिया जी लम पहुचला ! प्रभाकर चौधरी मुखिया जिक आगा हाथ जोरी क ठाड़ भ गेला और बजला मालीक  इ हमरा तरप एक छोट-छीन भेट स्वीकार करियों !
 मुखिया जी वाह बहुत नीक  सुनलो हन आहा डॉक्दरी के परीक्षा उत्रिन्न भेलो हन, प्रभाकर चौधरी जी मालीक,  मुखिया जी अपन नोकर के आवाज़ देलखिन और नोकर एलेन और ओ समान ल जै लगलैन, मुखिया जी बुझ्लैथ इ नोकर बहुत चलाक या एकरा कोन तरहे समझैल जे !
 मुखिया जी बजला रओ ओही कपरा में बंद एक टा चिरैई छै और ओ बोतल में जहर  छै, ताहि लक् तु रस्ता में ओ कपरा नहीं खोलिहे बुझलही, नोकर जी मालीक हम आहा के बात बुझी गेलो !  नोकर समान लक् आगा बढल और एक कात कोंटा में चुपचाप अपन सबटा मुर्गा खा  लेलक और दारू सेहो पीबी लेलेक और मचान पर जा क सूती रहल ! मुखिया जी दाँत मजेत, सुंदर सागर पोखेर स नेहेने आबी गेला और अपन कनियाँ स बजला हे यै सुनैत छी हमरा सकरी बजार जै के अछी ताहि दुआरे आहा हमरा किछु  जलपान द दिय ! कनियाँ बजलेंन अखन कनी समय लगत कने रुकी जउ !
मुखिया जी अच्छा ओ छोरु नोकर जे देलक से द दिय ओहे काफी या जलपान जोकरक ! कनियाँ बजलेंन नोकर हमरा कहा किछु देलक हन ओ जे एक भोर गेल से अखन तक  नजरीओ कहा परल या, इ सुनी क मुखिया जिक तामस माथ और नोकर के ताकअ लगला,  ओ देखे छथि सीधी के निचा में सुतल छल मुखिया जी एक लात मारी क उठेला और पुछलखिन त नोकर बजलेंन यऊ मालीक हम लक् आबी रहल छलो त रस्ता में एक  आँधी आयल और ओ कपरा उरी गेल जाही में स ओ चिरैई उरी गेल ताहि के डरे हम  ओ जहर पी लेलो और हम सूती क मौत के इंतज़ार क रहल छी !  

शुक्रवार, २५ नवम्बर २०११

गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

आँखी स पिबऽ दिय एक पैग के त बात या
कैह त पायब हुनका ओ राज के त बात या

नै कोनो सिकवा गीला नै कोनो फरियाद या
हम समझै छी आहाक हालात के त बात या

हम आहाक सामने जाहिर कऽरी या नै कऽरी
जान लेब हमर की इ जजबात के त बात या

तपलीफ में छी हम जख्म अहिक नाम स
मैन लेलो हम एकरा सौगात के त बात या

आई तक "मोहन जी" हारलथि नै कोनो खेल स
जे मिलल तकदीर स ओ म्हात के त बात या

रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)

बृहस्पतिवार, २४ नवम्बर २०११

गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)

सोचलो नै हम निक-बेजैई, देखलो सुनलो किछो नै /
मंगलो भगवान स हर समय, आहा सिवा किछो नै //

देखलो,चाहलो अहिके, सोचलो अहिके पुजलो अहिके /
"मोहन जी" के वफ़ा खता, आहाक खता किछोबो नै //

हुनका पर हमर आँख त, मोती बिछेलक दिन-रैत भैर /
भेजलो ओहे कागज हुनका, हम त लिखलो किछोबो नै //

एक साँझ के देहलीज़ पर,बैसल छलैथ ओ देर राती तक /
आँईख स केलैथ बात बहुत, मुह स कहलैथ किछ्बो नै //

पांच-दस दिन के बात या,दिल ख़ाक में मिल जायत /
आईग पर जखन कागज राखब, बाकी बचत किछ्बो नै //

रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)
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